उच्च शिक्षा में संलग्न प्राध्यापक व कर्मचारियों में प्रथम तो अभिप्रेरणा की कमी है यही स्थिति कमोवेश स्कूल शिक्षा में भी बनी हुई है. मुख्य कारण इन विभागों में पदोन्नति का न होना है. साथ ही इसका नुकसान विद्यार्थियों को भी होता है क्योंकि जिस अनुभव की आवश्यकता एक संस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए होती है उनसे शासकीय कॉलेज व स्कूल वंचित रह जाते है.
दूसरी एक महत्वपूर्ण समस्या है देश के विश्वविद्यालय व कॉलेज में ऐसे पाठ्यक्रमों का चलना, जिनके करने के बाद विद्यार्थी बेरोजगार का तमगा लगा कर घूमते रहते है. रोजगार तलाशने के दौरान, उनके द्वारा अर्जित कौशल व ज्ञान, उपयोग के अभाव में समाप्त प्राय हो जाता है.
शासन इस दिशा में निम्न लिखित प्रयास कर सकता है.
(1) अनुपयोगी पाठ्यक्रम को तत्काल बंद करें.
(2)शासन अपने विभागों में लगभग 50% कार्य इंटर्नशिप के लिए निर्धारित करें.
(3) अग्निवीर योजना की तरह इन इंटर्न से लगभग 50%पद भरे जाए.
(4)सिर्फ उन्ही महाविद्यालय व विश्वाविद्यालयों को मान्यता दी जाए जो की 100% प्लेसमेंट दे सके
(5) नवीन शिक्षा नीति का कड़ाई से पालन हो.
(6)स्कूल शिक्षा से पदोन्नति योग्यता के आधार पर उच्च शिक्षा में भी की जाए.
(7)शैक्षिक भ्रमण पाठ्यक्रम का अनिवार्य हिस्सा बनाया जाय
[8] भारतीय प्रबंधन संस्थान, राष्ट्रीय कानून विश्वविद्यालय, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान और कुछ अन्य प्रतिष्ठित संस्थानों को आम छात्रों के रोजगार कौशल में सुधार के लिए दूरस्थ शिक्षा मोड में पाठ्यक्रम शुरू करना चाहिए।
(ललित मोहन शुक्ला )
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