डॉ. सुमन मिश्रा: एक बहुमुखी हिंदी कवयित्री

नाम-डाॅ. सुमन मिश्रा 
शिक्षा-एम ए हिन्दी, विद्या वाचस्पति
जन्म तिथि-31-12-58
जन्म स्थान-जमरेही प्रथम जिला जालौन(उ प्र)
*विधाएं*-
गीत, गजल, नज़्म, छंद, विधाता छंद, किरीट छंद,सरसी छंद मुक्तक, घनाक्षरी, सवैया - (मत्तगयंग) छंद दोहा, चौपाई, अतुकान्त व आलेख
*प्रकाशित कृति*-  
1-सुमन सहस्रावली (दोहा-संग्रह) अयन प्रकाशन नई दिल्ली 
2-उतरता चाँद धरती पर (गीत-संग्रह) अनामिका प्रकाशन प्रयागराज 
3-काव्यांजलि(गीत-संग्रह) अंजुमन प्रकाशन प्रयागराज
4-रेत के घरौंदे (मुक्तक-संग्रह)अंजुमन प्रकाशन प्रयागराज 
5-शब्द डरते नही (अतुकांत) अयन प्रकाशन नई दिल्ली 
6-उपवन की खुशबू (काव्य संग्रह) अयन प्रकाशन नई दिल्ली 
*अप्रकाशित कृति*
1-बुंदेलखंड का शौर्य (पद्य) 
2-वैदेही की अन्तर्वेदना (खंड-काव्य)
*पुरस्कार*-
दिसम्बर 1980में नंदन शीर्षक प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार
*सम्मान*-
अखिल भारतीय साहित्य परिषद,भिण्ड (म प्र) 2016, बुंदेलखंड कला संस्थान, झाँसी 2016, सरल साहित्य संगम, झाँसी-2016 अखिल भारतीय काव्य-क्रान्ति परिषद, झाँसी-2017, सत्यार्थ साहित्य संस्थान, झाँसी,2017, कवितायन साहित्य संस्थान झाँसी द्वारा 'सरस्वती सम्मान', 2017 नव चेतना साहित्य एवं कला संस्थान, झाँसी 2018,  विश्व हिन्दी रचनाकार मंच द्वारा राष्ट्र भाषा हिन्दी प्रचार-प्रसार योजना के अंतर्गत उत्कृष्ट लेखन के लिए 'श्रेष्ठ रचनाकार'सम्मान से सम्मानित किया गया, श्री सरस्वती काव्य- कला संगम द्वारा सम्मानित कर 'काव्य श्री'की उपाधि से अलंकृत किया गया,2018 अखिल भारतीय हिन्दी सेवा समिति जिला इकाई टीकमगढ (म प्र) द्वारा अखिल भारतीय हिन्दी भाषा का "डाॅ बालयोगी सत्यानंद" स्मृति सम्मान -2018, आचार्य "दुर्गेश"फाउण्डेशन दतिया द्वारा आचार्य दुर्गेश सम्मान, 2018, डाॅ लोकेन्द्र सिंह नागर साहित्य समिति दतिया द्वारा "उत्कृष्ट साहित्य गौरव" सम्मान 2018, चौधरी चरण सिंह जयंती समारोह समिति,आगरा द्वारा "चौधरी चरण सिंह" स्मृति साहित्य सम्मान 2018, नवांकुर साहित्य एवं कला परिषद, झाँसी द्वारा कीर्तिशेष पंडित बद्रीप्रसाद त्रिवेदी स्मृति सम्मान 2019, वीरांगना महारानी लक्ष्मीवाई साहित्य सम्मान झाँसी 2019, शांति देवी अग्रवाल समृति सम्मान बिसौली, बदायूँ उ प्र 2019, मानस मृगेश स्मृति गीत गरिमा सम्मान सेंवढा, दतिया म प्र 2019, अखिल भारतीय साहित्यकार संस्था जबलपुर "कादम्बरी"द्वारा पं0 भवानी प्रसाद तिवारी सम्मान- 2019, सत्यार्थ साहित्कार संस्थान,झाँसी द्वारा "साहित्य भूषण" सम्मान 2021, बुंदेलखंड साहित्य संगीत कला संस्थान,झाँसी द्वारा "सारस्वत" सम्मान-2021, दो दिवसीय (पंचम) राष्ट्रीय साहित्य सम्मेलन,साहित्य लोक हिंदी गौरव सम्मान- 2021, सरस्वती काव्य-कला संगम द्वारा "काव्य कलाधर" सम्मान 18अप्रैल2021, साहित्य मंडल श्रीनाथद्वारा "हिंदी काव्य विभूषण'' सम्मान-15सितम्बर 2021, मीरा सूर साहित्य सृजन समिति द्वारा "सत्य सुधा" साहित्य सम्मान 8 दिसम्मबर 2021, संस्कार भारती जनपत, बांदा द्वारा "बुंदेलखंण्ड काव्य गौरव" सम्मान 18दिसम्बर 2021, श्रीनाथ शर्मा श्री गुरु जी स्मृति समारोह समिति भिण्ड द्वारा 'सचेतन सम्मान' 20 मार्च 2022,  डॉ शंकर लाल शुक्ल बुंदेली शोध एवं साहित्य संस्थान भांडेर द्वारा 'बुंदेली काव्य सम्मान' 7अगस्त 2022, तुलसी साहित्य अकादमी भोपाल द्वारा 'रत्नावली' सम्मान 19 नवंबर 2022, गौरक्ष शक्तिधाम सेवार्थ फाउंडेशन इंदौर द्वारा 'काव्य शिखर' सारस्वत सम्मान 25 दिसंबर 2022, 'सरोजिनी शर्मा स्मृति' सम्मान भीलवाड़ा 16अक्टूबर 2023, पं. रामतेज तिवारी आध्यात्मिक संस्थान लखनऊ द्वारा "हिंदी साहित्य गौरव काव्य शिरोमणि सम्मान" 14-2- 2024 
*अन्न साहित्यिक उपलब्धियाँ*-
1-विश्व विद्यालय अनुदान आयोग तथा साहित्य अकादमी नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित एवं बुंदेलखंड विश्व विद्यालय द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में सहभागिता
2-अखिल भारतीय साहित्य परिषद का 15वा राष्ट्रीय अधिवेशन दिनांक 6,7,एवं 8 अक्टूबर 2017 को जबलपुर(म प्र)में सहभागिता
3-अखिल भारतीय बुंदेलखंड साहित्य एवं संस्कृति परिषद, भोपाल (म प्र) द्वारा दिनांक 20,21दिसम्बर 2017 को ओरछा आयोजन में सहभागिता, हिंदी विभाग, बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झांसी( उ.प्र.) रुद्राणी कला ग्राम एवं शोध संस्थान, ओरछा (म. प्र.) द्वारा राष्ट्रीय संगोष्ठी में दिनांक 23 एवं 24 मई 2022 को सहभागिता, अखिल भारतीय विकलांग चेतना परिषद एवं प्रयास प्रकाशन बिलासपुर के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित नौवीं राष्ट्रीय शोध- संगोष्ठी दिनांक 11 एवं 12 जून 2022 को सहभागिता
4-आकाशवाणी छतरपुर (म प्र) से साक्षात्कार व गीतों का अनेक बार प्रसारण
5-आकाशवाणी झाॅंसी (उ प्र )से गीतों का प्रसारण
गीत व लेख अनेक पत्रिकाओं में प्रकाशित
*आजीवन सदस्य*-
1-अखिल भारतीय साहित्य परिषद
2-नव चेतना साहित्य एवं कला संस्थान
3-श्री सरस्वती काव्य-कला संगम
4-सत्यार्थ साहित्यकार संस्थान
5-वीरांगना मानश्री देवी बुंदेली काव्य मंच 
6--बुंदेलखंड साहित्य उन्नयन समिति 
अनमोलरत्न पत्रिका का संपादन
*पद*
1- अध्यक्ष अंतर्राष्ट्रीय महिला काव्य मंच पूर्वी इकाई झांसी 
2- मंत्री अखिल भारतीय साहित्य परिषद नगर इकाई झाँसी
निवास-
"पंचवटी"1274टयूब वैल रोड,खाती बाबा झाँसी (उ प्र)
पिन 284003
मोबाइल नम्बर-9935351220
email id-suman021982@gmail.com 
*गीत की संचित ऋचाएं*
गीत की संचित ऋचाएं, प्रेम पथ पर वार दीं हैं।
शब्द समिधा होम करके, ..द्वार पर तेरे पड़ी हूँ।।

याद है क्या उन पलों की, साथ जो हमने गुजारे।
करके स्मृतियाँ विर्सिजत,....आ गई नेपथ्य द्वारे।।
दर्द अंतर में सहेजे,.........चल रही ऐसी घड़ीं हूँ।
शब्द समिधा होम करके,....द्वार पर तेरे पड़ी हूँ।।

स्वप्न जो हमने सँजोये,........वे अधूरे रह गये है।
मृत हुए आरोप है सब, व्यथा उर की कह रहे है।।
जो नही आई अधर तक, मैं वही मधुरिम कड़ी हूँ।
शब्द समिधा होम करके,...द्वार पर तेरे पड़ी हूँ।।

काश!तुमको भी तपन ये, प्यार की महसूस होती।
तोड़ बंधन खोखले सब, आज मन के ताप धोती।।
मैं तुम्हारे बिन अधूरी,.....गीत की अंतिम लड़ी हूँ।
शब्द समिधा होम करके,......द्वार पर तेरे पड़ी हूँ।।

प्रश्न मुझसे कर रहे है,......नेह के अनुबंध सारे।
है 'सुमन' का द्वार सूना,अब जियूँ किसके सहारे।।
अश्रु से श्रृंगार करके,....आज मैं तनहा खड़ी हूँ।
शब्द समिधा होम करके,....द्वार पर तेरे पड़ी हूँ।।
...✍️ डॉ सुमन मिश्रा ©
*उतरता चांद धरती पर* से
 कुछ अन्य कविताएं व दोहे 
*सुमन!तुम तब रह पाते फूल*
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      मधु समीर के मधुर प्रणय में, 
            तुम इतना क्यों इठलाये।
                 जब तेरा सौंदर्य देखकर, 
                       है अनेक अलि ललचाये।।

      जब तुम उनका मान न करते, 
             हों जाते प्रतिकूल।
                   सुमन!तुम तब रह पाते फूल।।

       सोचा तुमने अपने मन में,
             है रक्षक बहुत हमारे। 
          ‌‌          छाया करती पीत परी नित, 
                            कोमल से पंख पसारे।।

      तब प्रहरी बन पहरा देते, 
            तेरे साथी शूल।
                   सुमन!तुम तब रह पाते फूल।।

       क्या कोई भी आज समीपी, 
              है प्यार जताने आया।
                     मतलब के साथी मिलंद ने, 
                           क्या गीत मिलन का गाया।।

       परिचित होते विश्व स्वार्थ से, 
              मिलते कभी न धूल,
                    सुमन!तुम तब रह पाते फूल।।
                        ...✍️ डॉ सुमन मिश्रा © 
                             "काव्यांजलि" से 
*बांध लिया मुझको बंधन में*
तुमने आपनी प्रणय डोर से,बाँध लिया मुझको बंधन में।
तुमने अपने संकेतों से ,....घोल दिये मधुकण जीवन में।।
तुमको पाया लगा कि जैसे, .मुझको मेरा मीत मिल गया।
टूटे हुए साज के स्वर को,..फिर से नव संगीत मिल गया।।

मिले नयन से नयन हमारे,..मन से मन की बात हो गई।
देख तुम्हारे चंद्रबदन को,....लगा चाँदनी रात हो गई।।
भाव सिन्धु में तुमने आकर,..मेरे मन का हरण कर लिया।
कोरा-कोरा मन था मेरा,..तुमने उसका वरण कर लिया।।

आये हो जब से जीवन में,......स्वप्न हमारे साध्य हो गये।
मन मंदिर में तुम्हें बसाया,.....तुम मेरे आराध्य हो गये।।
तुमको पाकर सब कुछ भूली,बसे हुए तुम हर चितवन में।
तुमको देखा लगा कि जैसे,....सपना देख रही हूँ दिन में।।

तुमने मेरी हर धड़कन पर,प्रिय अपना अधिकार कर लिया
पा करके संकेत तुम्हारा, .सपनों ने श्रृंगार कर लिया।।
दीप जलाये 'सुमन' खड़ी है,.स्वागत है मेरे मधुवन में।
तुमने अपनी प्रणय डोर से,.बाँध लिया मुझको बंधन में।।
...✍️ डॉ सुमन मिश्रा ©
जहां जैसी मिली राहें, उन्हीं में ढल रही हूं मैं।
न देखे पांव के छाले,  निरंतर चल रही हूं मैं।
जमाने के सितम सहकर, शिकायत कब करी मैंने- 
गरल चुपचाप पी करके, दिए सी जल रही हूं मैं।
डॉ सुमन मिश्रा
जीवन की उलझन सुलझाते, बीती मेरी उम्र तमाम।
कुछ खट्टी कुछ मीठी यादें, करती मुझसे मौन कलाम।
हल जीवन भर प्रश्न किये पर,अब भी सम्मुख शेष सवाल-
झंझावत से गात थका है, अब मैं चाहूॅं अल्प विराम।
...✍️ डॉ सुमन मिश्रा ©

विधाता छंद 
करो श्रृंगार मत इतना,. ..कि दर्पण खुद मचल जाए।
न ढाओ तुम सितम इतने,किसी का दम निकल जाए।
कहानी याद आती है, ......मुझे कौशिक तपस्या की-
मिले जब अप्सरा कोई,.... तपस्वी भी फिसल जाए।
...✍️ डॉ सुमन मिश्रा ©
एक मुक्तक श्रंगार पर 
चांदनी रात है हाथ में हाथ है, दो दिलों का दिलों से मिलन हो रहा।
जुल्फ उलझी हुई सांस महकीं हुई, संदली संदली सा बदन हो रहा।
प्रीति का जाम होंठों से हमने पिया, प्रेम से प्रेम का आचमन हो गया-
था नशा प्यार का जब चढ़ा यूं लगा, तप्त अधरों से जैसे हवन हो रहा।
...✍️ डॉ सुमन मिश्रा ©
तुलसीदास जयंती पर विशेष 
तुलसी ने हमको दिया, अनुपम मानस ग्रंथ।
जिसको पढ़ करके मिला, भक्ति मार्ग का पंथ।।-1

साहित्यिक आकाश में, तुलसी हुए महान।
राम रसायन मंत्र का, दिया हमे सत ज्ञान।।-2

मानस में तुलसी रचे, अनुपम दोहे छंद।
राम नाम के मंत्र का, दिया हमें मकरंद।।-3

संस्कृति जब घायल हुई, क्षीण हुआ इतिहास।
भक्ति काल के उदय में, ....आये तुलसीदास।।-4

रामायण रचके दिया, जन-जन को संदेश।
सत्य सनातन धर्म को, मिला सुखद परिवेश।।-5
...✍️ डॉ सुमन मिश्रा © 
नूतन सृजन 

*मोबाइल*
तुम बिन तो ऐसा लगता है,.....ज्यों अब कोई खास नही है।
नीद न आती तुम बिन हमको. पर तुमको आभास नही है।

तुम्हें  छोड़ने  की  मै  सोचूँ  , ... मेरे बस की बात नही है।
तुम से बढ़कर आज हमारी ,...अब कोई सौगात नही है।।

आँख खुले तो तुम्हें निहारूँ,....प्रातः वंदन तुमको करते।
ऐसी चाहत  हुई  तुम्हारी ,.......दिखो नही तो आहें भरते।।

बच्चें भी तो तुम्हें चाहते,...तुम सँग अपना मन बहलाते।
खेल खिलौने सभी छोड़कर,.साथ तुम्हारे समय बिताते।।

तुमने  कैसा जादू डाला,.सबसे अधिक तुम्हीं हो भाते।
अधिक हानि कारक सब कहते,फिर भी तुम्हें छोड़ ना पाते

सब कुछ तो है तुझमें पाया, सभी समस्या का तुम हल हो।
और कभी एकान्त रहूँ तो,.साथ निभाते तुम  हर पल हो।।

जनम जनम तक साथ हमारा, तुम बिन रहना अब मुश्किल है।
'सुमन'जिसे अब छोड़ न सकती, प्रिय ऐसा यह मोबाइल 
है।।
..✍️ डॉ सुमन मिश्रा ©
कुछ लोकप्रिय दोहे 
मां वाणी ने ही दिया, ब्रह्म शक्ति का ज्ञान।
जला ज्ञान की ज्योति उर, दूर किया अज्ञान।।-1

मां वाणी से ही मिला, ....शब्दों का वरदान।
भाव सुमन अर्पित उन्हें, मुझे अकिंचन जान।।-2

वेद पढ़े गीता पढ़ी,.......फिर भी मिला न ज्ञान।
कलुष न मन के धुल सके,गया न उर अभिमान।।-3...

पाप नही यह तन करे, वह मन के आधीन।
गंगा में मन धोइये,.....तन है कहाँ मलीन।।-4........

अति अपनापन हो जहाँ, रहिए वहाँ सचेत।
घातक होते है वही,.......ठगते सूद समेत।।-5..........

सत्य बोलना है कठिन,...मांगे लोग सबूत।
झूठ खड़ा है साधु बन, तन पर लगा भभूत।।-6

माटी में मिलती सदा,..नश्वर है यह देह।
अविनाशी है आत्मा, उसका है यह गेह।।-7..........

रक्खे सभी सँभाल कर,मिले प्रेम के पत्र। 
सूखे फूल गुलाब के,.....महक रहे है यत्र।।-8..........

उर कहता सुन उर्वशी,.......तू है मेरा प्यार।
याचक बनके मैं खड़ा, खोलो मन का द्वार।।-9..........

प्रेम नहीं है वासना, यह जीवन श्रंगार।
जो डूबा इस प्रेम में, उसने जाना सार।।-10

प्रेम पाश में बँध गये,.........ज्ञानी, संत ,सुजान।
कौशिक मुनि ने त्याग तप,किया प्रणय का पान।।-11

प्रेम साधना योग है,......प्रेम सृष्टि आधार।
दीप जलायें नेह का,...अपने मन के द्वार।।-12

जेठ मास है या शिशिर, पतझड़ या हेमंत।
प्रेम कोंपलें जब खिलें, समझो तभी बसंत।।-13

उमड़ घुमड़ कर श्यामघन, बरसे सारी रात।
मन फिर भी प्यासा रहा, भीगा केवल गात।।-14

प्रेम डगर की नित रही, जग में प्रचलित रीति।
ज्यों ज्यों व्याकुलता बढ़ी, त्यों त्यों बाढी प्रीति।।-15

नज़रों से नज़रें मिली, मौन हुए जज़्बात।
अधरों की खामोशियां, कहती मन की बात।।-16

अधरों की खामोशियां, शब्दों का ये मौन।
मन की ये बेचैनियां, तुम बिन समझे कौन।।-17

मिले नयन से नयन जब, महकी महकी प्रीति।
बजीं प्रीति शहनाईयां,      मधुरिम है संगीत।।-18

शर्तों पर टिकते नहीं, कभी प्रेम अनुबंध।
कहती हैं अनुभूतियां, समझो प्रेम प्रबंध।।-19

मूर्ख स्वयं को समझते, सर्वश्रेष्ठ विद्वान।
ज्ञानी का करते हैं नहीं, अपनी बुद्धि बखान।।-20

रंगमंच है यह धरा, हम सब नाटककार।
निर्णायक तो है वही, जग का पालनहार।।-21

लोभी मन जब से हुआ, आये दोष विकार। 
इसके आगे बुद्धि ने, ...डाल दिये हथियार।।-22

मन बस में जो कर लिया, संयम से श्रीमान।
तप से भी यह है कठिन आत्म तत्व का ज्ञान।।-23

ढलती सी इस सांझ ने, मुझको दी आवाज।
कई समंदर पीर के,.... पीकर आई आज।।-24

जन्म दिवस पर मैं तुम्हें, दूं क्या प्रिय उपहार।
तुम्हें समर्पित कर रही, ..... शब्दों का संसार।।-25

अल्हड़ होती उम्र जब, धरती पड़ें न पैर।
मन चंचल करता फिरे,आसमान की सैर।।-26

जीवन भर मन में रहा,.....मेरे यह संत्रास । 
धोखा उनसे ही मिला, जो थे दिल के पास।।-27

जीवन में अनुभव मिले,मिले घात प्रति घात।
अंतर मन घायल हुआ,..... पा ऐसी सौगात ।।-28

बदल गई हैं भावना, बदल गया परिवेश।
करें दिखावा नेह का, उर में रखते द्वेष।।-29

जीवन के संचित सभी,तप दूँ तुझ पर वार।
यही प्रेम का सार है,.......यही प्रेम उपहार।।-30

दर्पण से छुपता नहीं,...दाग न कोई मित्र।
जैसा जिसका रूप है, बिम्बित वैसा चित्र।।-31

बँटवारे में खिच गयी,आँगन बीच लकीर।
बंधु पड़ोसी हो गया, किसे दिखाएं पीर।।-32

जैसे ही मुझको हुआ,....ढाई आखर ज्ञान।
भाप सरीखा उड़ गया,अंतस का अभिमान।।-33

कर्मों की गठरी लिए, ढोता रहा शरीर।
अंतर बैठे ईश की, दिखी नही तस्वीर।।-34

रिश्ते होते काँच से, रखिए उन्हें सम्भाल।
टूट गये तो हृदय में,...चुभते है तत्काल।।-35

आरक्षण के नाम पर, प्रतिभाओं का खून।
पग-पग पर मसले गए, खिलते हुए प्रसून।।-36
...✍️ डॉ सुमन मिश्रा © 
ढाई आखर प्रेम का, जब से पढा कबीर।
मन वैरागी हो गया, तन हो गया फकीर।।-37

आयु पूर्ण कर जीव जब,पहुँचा प्रभु के द्वार।
तब ही आया समझ में,जीवन भर का सार।।-38

रिश्ते चुभे बबूल से,.....आहत मन है मौन।
अर्थ हीन जीवन समझ,...टूट गया सागौन।।-39

नयन सिन्धु में डूबकर , हुए नेह अभिसिक्त।
क्या परिभाषा प्यार की, है इसके अतिरिक्त।।-40

माँ की ममता का कभी,चुका न पायी मोल।
जिसके आँचल के तले,आयी आँखे खोल।।-42

प्रेम गीत पिक गा रही,अब तो सुनो बसंत।
इक दूजे के हो गये,...आज कामिनी कंत।।-42

दर्शन चारों धाम के, कर आये सौ बार।
पर अंतस बदला नहीं,.कैसे हो उद्धार।।-43

सुरसरि मोक्ष प्रदायिनी, ....धोती मन के पाप।
जिसके तट पर बैठकर, ऋषि मुनि करते जाप।।-44

पाप नाशिनी सुरसरी,.......कहते वेद पुरान।
निकलीं हैं शिव जटा से, मोक्षदायिनी नाम।।-45

जीवन भर बुनते रहे, मकड़ी जैसा जाल।
खुद ही उसमें फॅंस गये, खड़ा सामने काल।।-46

राजनीति में सब सुलभ, कुछ भी नहीं विचित्र।
पानी ही अब हो गया,.........अंगारों का मित्र।।-47

नारी को अबला समझ,..करें न अत्याचार।
रणचंडी भी है वही,........जाने सब संसार।।-48

अंधों के राजा बनें,.......देखो काने लोग।
राजनीति करने लगी,...कैसे मित्र प्रयोग।।-49

भाग दौड़ की जिन्दगी,थका थका है गात।
कदम कदम पर ठोकरें,दिखा रहीं औकात।।-50

चोट अगर तन पर लगे,.दवा लगाते लोग।
अंतर्मन घायल हुआ, समझ न आया रोग।।-51

प्रभु का निर्णय देखकर,मन हो गया अधीर।
मन बैरी करनी करे,.......पाये सजा शरीर।।-52

सत्य सदा से श्रेष्ठ है,....हरयुग में हे मित्र।
जिसके आगे झूठ का,चले न छद्म चरित्र।।-53

अक्षय तृतिया का सदा,अक्षय रहता दान।
दान अहं का कीजिए,..जीवन बने महान।।-54

तृष्णा ऐसी आग है, दिन-दिन बढती जाय।
मानव को वश में करे, जीवन भर भटकाय।।-55

गरल पान कर शिव हुए,नीलकंठ भगवान।
जहर बाँटता फिर रहा,..कलयुग में इंसान।।-56

बीच भँवर नैया फँसी,..... टूटी है पतवार।
अंग हुए है शिथिल सब,कैसे हो भव पार।।-57

दंभ और छल कपट सब ,मन में बोते शूल।
त्याग करें इनका सदा,.महके जीवन फूल।।-58

जला ज्ञान की ज्योति उर,अंतर किया प्रकाश।
शिल्पकार बन गुरु प्रवर,जीवन दिया तराश।।-59

बादल में विधु छिप गया,ज्यों घूँघट में नारि।
घोर घनेरी है निशा,........जैसे कृष्णमुरारि।।-60

महक रही है कहीं पर, बेला आधी रात।
छू करके उसका बदन, पवन फिरे बौरात।।-61

प्रणय मिलन पर जब किया, मेरे मन ने शोध। 
तब पाया अलि फूल से,... पाता प्रेम प्रबोध।।-62

प्रियतम से हमको मिला, जीवन का श्रृंगार।
जिनकी सुरभित छाॅंव में, महका मेरा प्यार।।-63

नयन सिंधु में डूबकर, ...हुए नेह अभिसिक्त।
परिभाषा क्या प्यार की, है इसके अतिरिक्त।।-64

नयन बाण घायल करें,... अधर करें मदहोश।
एक झलक उनकी दिखी, मन ने खोया होश।।-65

मधुऋतु मधुमह मधुनिशा, मधुर प्रीति अनुबंध।
मेरे मन की उर्वशी, ..........अनुपम तेरा बंध।।-66

...✍️ डॉ सुमन मिश्रा © 
परिभाषा तो प्यार की, करते लोग अनेक।
प्यार पतंगा ने किया, .सोचा नहीं विवेक।।-67

कलयुग में कवि की कलम, हुई अगर जो मौन। 
सुमन कथा संसार की, ......गाएगा फिर कौन।।-68
...✍️ डॉ सुमन मिश्रा © 

मधुपराग का पानकर, अलि जाते हैं भूल।
सुमन विरह में जल रहे, हॅंसे देखकर फूल।।-69

आमंत्रण दे प्रेम का, ......मुस्काते है फूल।
अलि पराग का पानकर, जाते उनको भूल।।-70

वृक्षों में भी जान है, कहता यह विज्ञान। 
प्राण वायु दे कर हमें,  देते जीवन दान।।-71

कलिका को चूमें भ्रमर, ...करता है गुंजार। 
उषा लजाती सी खड़ी , सूरज हुआ निसार।।-72

आया है ऋतुराज सखि, महके दिशा दिगंत।
दुल्हन सी सजती धरा, ढूंढ रही ज्यों कंत।।-73

इंद्रधनुष दिखते नहीं, जब हो वर्षा अंत। 
चादर ओढ़े धूप की, आया अब हेमंत।।-74

दीप जलाए प्रेम का,आया पीत बसंत
वाट जोहती कामिनी, कब आयेंगे कंत।।-75

इंद्रधनुष के रंग से,... अच्छादित आकाश। 
हे सखि बैरी सा लगे, बिन साजन मधुमास।।-66

सुमन सभी है हॅंस रहे, भ्रमर गा रहे गान। 
हर्षित होते हैं विहग, आया नया विहान।।-77

राम लला की जीत पर , आज मनायें जश्न।
ध्वस्त कर दिये कोर्ट ने,सभी विवादित प्रश्न।।-78

घी के दिये जलाइये ,शुभ दिन आया आज।
मानो फिर से मिल गया ,राम लला को राज।।-79

देवालय श्री राम का,.....भव्य बने अविराम।
निर्वासित थे प्रभु अभी ,....सत्ता पायी राम।।-80

जीत हुई है सत्य की,...झूठ पराजित आज।
न्यायालय ने सत्य को,.....पहनाया है ताज।।-81

स्वर्णाक्षर अंकित हुआ,.आज नया इतिहास।
श्रद्धा वा विश्वास का , दिवस बना यह खास।।-82

अमर सदा ब्राह्मांड में,.. प्रभु की कीर्ति अशेष।।
भाव समर्पित कर रही,....उर के सुमन विशेष ।।-84

हम सब की यह जीत है,..... ...गाये मंगलचार।।
वर्षों की थी कामना ............स्वप्न हुए साकार।।-84

हृदय से श्री राम का,.........करते हम सत्कार।
दीप जलाकर नेह का,..........रखा देहरी द्वार।।-85

जिनके उर में राम है......... प्रभु चरणों में धाम।
राम भक्त हनुमान को,.........मेरा कोटि प्रणाम।।-86

सत्य पराजित हो रहा,.......अंधा है कानून।
किसे सुनाएं हम व्यथा,...हृदय हुआ है सून।।-87

गैरों का सुख छीनकर,......होते जो खुशहाल।
सुमन हकीकत जानकर,मन को हुआ मलाल।।-88

अन्नदेव के जनक जो,....कहते उन्हें किसान।
श्रम करते वे रात दिन,....नही स्वयं का भान।।-89

ईश्वर तो सर्वज्ञ है,......कण-कण उसका वास।
वह तो सबके उर बसे,.....फिर कैसा उपवास।।-90

दीप जलाओ नेह का ,........करे दर्प सब चूर।
अंधकार उर का हरे,........खुशियाँ दे भरपूर।।-91

घर घर में है जल रहे,........देखो दीप अनेक।
उर में अधियारा सघन,...जाग्रित नही विवेक।।-92

नेह जला बाती जली,....फिर भी दीप उदास।
तिमिर रहा दीपक तले,...जग करता उपहास।।-93

उतर गया सिर पर चढा,....उनका प्रेम खुमार।
उसने पूछा प्यार से,...........आप कौन है यार।।-94

हिय में मेरे बस गये,...कान्हा के द्वय नैन।
उनको अब देखे बिना, पड़े न उर को चैन।।-95

धागा है यह प्रेम का,..जिसे कहें गठबंध।
जीवन भर रहते मधुर,.नेह प्रीति के बंध।।-96

विपदाओं से न डरे,......रखें भरोसा ईश।
राम शरण में जाइये ,....रक्षा करे कपीश।।-97

भई प्रेम में वावरी,.........मीरा नवलकिशोर।
मन में है अनुराग अति,जिसका ओर न छोर।।-98

प्रेम दिवानी हो गई,.......मीरा पा घन श्याम।
श्याम श्याम रटती रहे, ...हर पल आठों याम।।-99

सुध बुध खोई हे सखी,निरख श्याम की ओर।
चैन चुराकर ले गया ,......उर का माखनचोर।।-100

हृदय बसी छवि साँवली,..हरपल आठों याम।
मन मंदिर में बस गये,....सखि मेरे घन श्याम।।-101

मन मयूर है नाचता,..........सुन वंशी के बेन।
नीद न आती रात को,...........राधा है बैचेन।।-102

नेह दीप पावन जले,.........मन में भरे उमंग।
लक्ष्मी जी का आगमन,..हो गणपति के संग।।-103

भूख सभी को सत्य की,भाया किन्तु न स्वाद।
सत्य परोसा जब गया, मन में घुला विषाद।।-104

जहां दंभ का वास हो, वहां न टिकता ज्ञान।
अवरोधक बनके खड़ा, अंतस का अभिमान।।-105

मित्र राखिए कृष्ण सा, सदा दिलाये जीत।
या हो वो फिर कर्ण सा, रहे हार में मीत।।-106

सर्दी से जो कांपते, ....उन पर चादर डाल।
चादर चढ़ी मजार की, कहती मन का हाल।।-107

रश्मिरथी के तेज से,...आच्छादित आकाश। 
आत्मसात कर ज्ञान का, अंतर हुआ प्रकाश।।-108

रक्षक है जो वतन के,..करती उन्हें प्रणाम।
एक दीप मैं धर रही,....उन वीरों के नाम।।-109

रंग भूमि के पात्र हम, प्रभु हैं नाटककार।
निर्देशक भी हैं वही,..जग के पालनहार।।-110

रंगमंच है यह धरा, हम सब नाटककार।
निर्णायक तो है वही, जग का पालनहार।।-111

ऋषियों ने सद्ज्ञान का, हमे पिलाया सोम।
भारत के भूषण यही, भूषित इनसे व्योम।।-112

ऋतु बसंत की आ गई,कर अपना श्रृंगार।
मचल रही है तूलिका,...करने को दीदार।।-113

राधा के सँग श्याम का,है कैसा अनुबंध।
बिन बाँधे ही बँध गये, प्रीति डोर के बंध।।-114

ओस बिन्दु ने कर दिया, रजनी का श्रृंगार।
प्रात सूर्य की किरण ने, गहने लिए उतार।।-115

नही सुरक्षित बेटियाँ,..अपने ही परिवार।
कलुष भरे रिश्ते सभी, इज्जत रहे उतार।।-116

जिस तन पर अभिमान कर,चला नित्य इतराय।
अंत समय में तन वही , बोझा उठा न पाय।।-117

कभी केर या बेर से,मिले राह में मीत।
यादों में संचित रहे,भूला नही अतीत।।-118

गुनगुन करते हैं भ्रमर,आया पीत बसंत।
चादर ओढे शीत की,बिदा हुआ हेमंत।।-119

वेदों ने वर्णित किया गौमाता का गान।
वैतरनी से पार कर,करती माँ कल्यान।।-120

नाम बहुत है ईश के, उसके रूप अनेक।
सत्य सनातन जगत में,परम तत्व प्रभु एक।।-121

सुभग सुहानी भागवत, देती हमें विवेक। 
जिसमें हैं श्रीकृष्ण के, विग्रह रूप अनेक।।-122

मात पिता तुमको नमन, ..तुमसे पाई देह।
संस्कार गढ़ कर दिया,तुमने सुखद सनेह।।-123

यादें ही लिखतीं सदा,विरह मिलन के गीत।
आँखें होतीं बंद तब, ..तुम ही दिखते मीत।।-124

नीर क्षीर का भेद कर, ...ज्ञानी हुए मराल।
बिना कर्म मिलते नही,मुक्ता माणिक लाल।।-125

अमलतास में आ गयेपीले -पीले फूल।
देवदार के वृक्ष अब,गये धरा को भूल।।-126

दो दिन की है जिंदगी,दुनिया एक सराँय।
सभी मुसाफिर हैं यहाँ,रात बिताकर जाँय।।-127

सभी आधुनिक हो गये,अपनी संस्कृति छोड़।
पश्चिम संस्कृति की यहाँ,... लगी हुई है होड़।।-128

आँसू बहकर आँख से, जब बाहर आ जाँय।
लाख जतन कर लो मगर,भेद न छुपने पाँय।।-129

मितभाषी जन का सदा, होता जग में मान।
सार तत्व से है निहित,उसका हर व्याख्यान।।-130

कुछ तो है मजबूरियां, कहता नहीं चिराग।
डरता है वह पवन से, बुझा न जाए आग।।-131
..✍️ डॉ सुमन मिश्रा ©

जिस धन को अपना समझ,  करता रहा गुमान।
अंत  समय में धन वही, बचा न पाया प्रान।।-132

गैरों की कमियां परख, करने लगे हिसाब।
मगर कभी बांची नहीं, अपनी बंद किताब।।-133
..✍️ डॉ सुमन मिश्रा ©
जिस धन का संचय किया, आया वह किस काम।
पल भर में पहुंचा दिया, तुम्हें मुक्ति के धाम।।-134
..✍️ डॉ सुमन मिश्रा ©
राम रसायन मंत्र का,.......करता है जो पान। 
काम क्रोध मद लोभ का, मिट जाता अज्ञान।।-135

फल की चिंता छोड़कर, नित्य करें शुभ कर्म।
फल देना विधि हाथ है, ...कहता है यह धर्म।।-136

कलम पुष्प सब सुमन के,महक रहे है आज।
जैसे जीवन के सभी, ....खोल रहे हो राज।।-137

विधि ने जो भी लिख दिया,कोय न मेटनहार। 
राज तिलक था राम का,वन ले गया लिलार।।-138

जग के पालन हार प्रभु,पहुँचे गंगा तीर।
केवट चरण पखारते,कठवा में भर नीर।।-139

श्रद्धानत करती नमन,....हरपल आठों याम।
माँ सीता के साथ में ,.......वहाँ विराजे राम।।-140

दो अक्षर में है निहित,... ...रामायण का सार।
जय बोलो श्री राम की,......हो जायें भव पार।।-141

दाता तो प्रभु राम है, याचक सब संसार।
भव सागर से पार वह, करते बिन पतवार।।-142

प्रियतम से हमको मिला, जीवन का श्रृंगार।
जिसकी सुरभित छाँव में, महका मेरा प्यार।।-143

लुप्त हुए आंचल सभी, आया ऐसा दौर। 
पाश्चात्य रंग चढ़ गया, मिले न उसको ठौर।।-144

हिन्दी से मुझको मिला, साहित्यिक आकाश। 
सृजन सार्थक हो गया,.. जीवन है मधुमास।।-145

नये*****
मिले नयन से नयन जब, हुआ नेह अनुबंध। 
मन अनुरागी हो गया, भूल गया प्रतिबंध।।-146

अहसासों में रख नमी, रिश्ते रखें संवार।
बिखर न जाए रेत से, उजड़ जाए संसार।।-147

जाते ही शमशान में, मिट गई खिची लकीर।
पास..पास ही जल रहे. राजा रंक फकीर।।-148

जब उनसे मिलना हुआ, भीग गए दृग कोर।
तन्मयता इतनी बढी, जिसका ओर न छोर।।-149

आया करवा चौथ का, यह पावन त्यौहार।
पूजन को सजनी चली, कर सोलह श्रंगार।।-150

खुशियों की सौगात ले, आई है यह रात।
सभी सुहागिन मांगती,अमर रहे अहवात।।-151

छलनी में रखके दिया, साजन रही निहार।
मन मंदिर में जल रहे, नेहिल दीप हजार।।-152

आया कार्तिक मास का,पावन पर्व पुनीत।
अर्धांगिनी पूजन करे, नयन झलकती प्रीति।।-153

अर्घ दे रही चांद को,....करती वह मनुहार।
पति को लम्बी आयु का, देना तुम उपहार।।-154

निर्जल व्रत पत्नी करें, मांग रही सौगात।
रक्षा पति की नित करें, सुनिए करवा मात।।-155

पड़ी आधुनिक दौर में, रिश्तों बीच दरार।
किसे सुनाऊं मैं व्यथा, करे कौन उपचार।।-156
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 संकलनकर्ता 
ललित मोहन शुक्ला 
भोपाल 



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