लक्ष्य

: हमारा असली दुश्मन हमसे कोई बाहरी वस्तु नहीं  है लेकिन हमारी चीखती कमजोरी, हमारा दोहरा व्यवहार, हमारी अत्यधिक  भावुकता है।हमारा मस्तिष्क वह सभी कर सकता है जो वह सक्रिय अवस्था मे करता है , जितना  वह निष्क्रिय व विचार  मुक्त शान्ति के कर सकता है जब हमारा मस्तिष्क स्थिरता में रहता है,तब सच्चाई को यह मौका मिलता है कि आप उसे शांति की पवित्रता में सुन सके
: लक्ष्य हीन जीवन बहुत कष्टदायक होता है।प्रत्येक व्यक्ति का  एक लक्ष्य अवश्य ही होना चाहिए।लेकिन इस बात का ध्यान रखे कि लक्ष्य की गुणवत्ता आपके जीवन की गुणवत्ता को निर्धारित करतीं है।आपका लक्ष्य बहुत ऊंचा व वृहद होना चाहिए यह आपके जीवन को मूल्यवान अपने लिए  ओर ओरों के लिए बनायेगा
।आपके कुछ भी आदर्श हो, लेकिन इन्हें जब तक प्राप्त नही किया जा सकता जब तक कि आपने अंदरूनी परिपूर्णता प्राप्त  कर ली हमारी सुरक्षा इसी में है कि हम अपने लिए ऊंचे लक्ष्य निर्धारित कर आगे बढ़ने  का प्रयास करें न कि आरामदायक लक्ष्य बना अत्यंत निम्न स्तर का जीवन यापन करें। सुरक्षित लक्ष्य व आराम दायक जिंदगी का सपना  हमे सुविधाजनक  व तार्किक मालूम दे  सकता है लेकिन इसका अंत बहुत बुरा हो सकता है। यह हमें रसातल में ले जाकर दलदल में  फसायेगा।हमारा सही व प्राकृतिक रास्ता कठिन व दुर्गम  लक्ष्य को प्राप्त करना है पूरी दुनिया स्वतंत्रता  को पसंद करती है लेकिन वह अभी भी अपनी जंजीरों से प्यार करती है। यह प्रकृति की पहली  दुविधाजनक  ओर न तोड़ सकने वाली  गाँठ है। सम्पूर्ण स्वास्थ्य, गंभीरता, सहिष्णुता, सतत प्रयास शांति, शांतपूर्ण रहना और स्वनियंत्रण यह सभी  उदाहरण से समझे जा सकते है इनके लिए सूंदर भाषण की आवश्यकता नही : शांत  मस्तिष्क का रहना , विचार शुन्य  होना नही है। विचार आते लेकिन वह सतह पर होते है ओर आप उनका होना    देख सकते है, आप स्वयं  को   महसूस कर उनसे अलग  हो देख सकते हैं और  उनको साथ ले कर नही चलते।  कुछ ही लोग इस स्वप्रकाषित मार्ग पर चल पाते है। मात्र आत्मा की पवित्रता लिये व्यक्ति ही सरल, लेकिन दुर्गम प्रकाशित मार्ग पर चल सकते है

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